कोई तो किश्त है! जो शायद अदा नहीं है..
कोई तो किश्त है!
जो शायद अदा नहीं है,
साँस बाक़ी है!
और हवा नहीं है..
नसीहतें, सलाहें, हिदायतें
तमाम पर्चे पर है,
पर दवा नहीं है..
आँख भी ढक लीजिये संग मुँह के,
मंज़र सचमुच अच्छा नहीं है..
खुन बिका, पानी बिका,
आज बिक रही है हवा,
कुदरत का ये तमाचा बेवजह नहीं है..
हर एक शामिल है इस गुनाह में,
कुसूर किसी एक का नहीं है..छ
वक्त है अब भी ठहर जाओ
अभी सब कुछ लुटा नहीं है..!!