एक सूफी कथा
एक सूफी कथा है। गजनीे महमूद के दरबार
में एक आदमी आया।वह अपने बेटे को साथ लाया था।
उसने बेटे को बड़े ढंग से बड़ा किया था, बड़े संस्कारों में ढाला था, बड़ा परिष्कृत किया था। सदा से उसकी यही आकांक्षा थी कि उसका एक बेटा कम से कम महमूद के दरबार का अहम हिस्सा बन जाए।
उसने उसके लिए ही अपने लड़के को बड़ी मेहनत से तैयार किया था।
उसे पक्का भरोसा था, क्योंकि उसने सभी परीक्षाएं
भी उत्तीर्ण कर ली थीं और जहां-जहा उसे पढ़ने-लिखने भेजा था,उसके गुरुओं ने बड़े प्रमाण-पत्र दिए थे और उसकी बड़ी प्रशंसा की थी। वह बड़ा बुद्धिमान युवक था। सुंदर था,दरबार के योग्य था। आशा थी बाप को कि कभी नकभी वह बड़ा वजीर भी बन जाएगा।
महमूद से आकर उसने कहा कि मेरे पांच बेटों में यह सबसे ज्यादा सुंदर, सबसे ज्यादा स्वस्थ, सबसे ज्यादा बुद्धिमान है।
यह आपके दरबार में शोभा पा सकता है, आप इसे एक मौका दें। और जो भी जाना जा सकता है, इसने जान लिया।
महमूद ने अपना सिर भी ऊपर नहीं उठाया,ओर
उसने आदेश दिआ कि, इसे एक साल बाद लाओ मेरे दरबार में।
बाप ने सोचा, शायद अभी कुछ कमी है इसमें,क्योंकि सम्राट ने चेहरा भी उठाकर नहीं देखा इसकी तरफ।
उसके बाप ने उसे एक साल के लिए और अध्ययन के लिए भेज दिया।
सालभर के बाद जब वह और अध्ययन करके लौटा ,अब
अध्ययन को भी कुछ भी ओर ना बचा, वह आखिरी डिग्री भी ले आया,उसका पिता उसे फिर लेकर पहुंचा महमूद के दरबार में।
महमूद ने उसकी तरफ देखा;
लेकिन कहा, ठीक है, लेकिन इसकी क्या विशेषता है?
किसलिए तुम चाहते हो कि यह दरबार में रहे?
तो उसके बाप ने कहा, इसे मैंने सूफियों के सत्संग में बड़ा
किया है। सूफी-मत के संबंध में जितना बड़ा अब यह जानकार है, दूसरा खोजना मुश्किल है।यह आपका सूफी सलाहकार होगा। रहस्य धर्म का कोई न कोई जानने वाला दरबार में होना चाहिए, नहीं तो दरबार की शोभा नहीं है। आपके दरबार में सब हैं बड़े बड़े कवि हैं, बड़े पंडित हैं,
बड़े भाषाविद हैं लेकिन कोई सूफी नहीं।
महमूद ने कहा, ठीक है।इसे एक साल बाद लाओ।
एक साल बाद फिर लेकर उपस्थित हुआ। अब तो बाप भी थोड़ा डरने लगा कि यह तो हर बार एक साल ही बोल देता है!महमूद ने कहा कि ऐसा करो, तुम्हारी निष्ठा है,
तुम बड़ी लगन से पीछे लगे हो, इसलिए मुझे भी लगता है कुछ करना जरूरी है। तुम हारे नहीं हो, हताश भी नहीं हूए हो!
उसने इस बार उस युवक से कहा कि तुम जाओ और
किसी सूफी सन्त महात्मा को अपना गुरु बना लो, और किसी सूफी सन्त को खोज लो जो तुम्हें अपना शिष्य बनाने को तैयार हो जाए। लेकिन ये बात याद रखना कि केवल किसी सन्त को तुम्हारा गुरु मान लेना काफी नहीं होगा।कोई सूफी सन्त तुम्हें भी अपना शिष्य मानने को तैयार हो।
फिर एक सालभर बाद आ जाना।
वह युवक सम्राट की बात सुनकर चला गया। एक सन्त के चरणों में बैठ गया। सालभर बाद उसका बाप उसको लेने आया। वह गुरु के चरणों में बैठा था,
उसने बाप की तरफ देखा ही नहीं। बाप ने उसे हिलाया कि नासमझ, क्या कर रहा है? उठ, साल बीत गया, फिर दरबार चलना है।
उसने बाप को कोई जवाब ही नहीं दिया। वह अपने गुरु के पैर दबा रहा था, वह पैर ही दबाता रहा। बाप ने कहा कि व्यर्थ हो गया इसका जीवन; काम से गया, निकम्मा सिद्ध हो गया यह अब।
इसीलिए हमने तुझे पहले किसी सूफी फकीर के पास नहीं भेजा था। हम पंडितों के पास ही इसलिए भेजते रहे;
यह सम्राट महमूद ने कहकर की झंझट बात बता दी कि कोई गुरु खोजो,
और गुरु भी एेसा जो तुझे शिष्य की तरह स्वीकार कर ले!
तू सुनता क्यों नहीं? क्या तू पागल हो गया है,
या बहरा हो गया है?
मगर वह युवक चुप ही रहा।साल बीत गया, बाप दुखी होकर घर लौट गया।
महमूद ने पुछवाया उसके बाप से कि लड़का आया क्यों नहीं?
बाप ने कहा कि व्यर्थ हो गया वो, निकम्मा साबित हो गया।क्षमा करें मुझे, मेरी ही भूल थी, मैंने ही पत्थर को हीरा समझा।
लेकिन महमूद ने अपने वजीरों से कहा कि तैयारी की जाए,उस आश्रम में जाना पड़ेगा जहां वो लड़का है।
महमूद खुद आया। द्वार पर खड़ा हुआ।
गुरु लड़के को हाथ से पकड़कर दरवाजे पर लाया और महमूद से उसने कहा कि अब तुम्हारे योग्य बन गया है ये लड़का;
क्योंकि पहले तो यह तुम्हारे पास जाता था, अब तुम इसके पास आए। बाप की दृष्टि में यह निकम्मा हो गया,
किसी काम का न रहा!अब यह परमात्मा की दुनिया
में काम का हो गया है। अगर यह राजी है जाने के लिए
और तुम इसे ले जा सको , तो तुम्हारा दरबार शोभायमान होगा।
यह तुम्हारे दरबार की ज्योति बन जाएगा। कहते हैं, महमूद ने बहुत हाथ-पैर जोड़े, पर उस युवक ने कहा कि अब इन चरणों को छोड़कर कहीं जाना नहीं है।
दरबार मिल गया!दरबार मिल गया है सत्गुरू का।अब दौलत, शौहरत, दिखावा,रुतबा ओर मान अभिमान का कोई महत्व बचा ही नहीं है जीवन में।अब तो जीवन की,जिन्दगी की समझ आई है।अब क्या करुंगा आपके दरबार में।ये दर अब तों सासों के साथ ही छूटेगा।
महमूद वहां से निराश होकर लोट गया,लेकिन एक प्रश्न के साथ कि वहां उसे क्या ऐसा प्राप्त हो गया जो एक वैभव वाला जीवन ठुकरा दिया।
इसका उत्तर केवल वही समझ सका जिसने इस अडोल सत्ता से प्रेम किया,जिसने इसे पाया।