सातवां घड़ा – Morel Story
|| सातवां घड़ा ||
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गाँव में एक नाई अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रहता था।
नाई ईमानदार था और अपनी कमाई से संतुष्ट था।
उसे किसी तरह का लालच नहीं था।
नाई की पत्नी भी अपनी पति की कमाई हुई आय से बड़ी कुशलता से अपनी गृहस्थी चलाती थी।
कुल मिलाकर उनकी जिंदगी बड़े आराम से हंसी-खुशी से गुजर रही थी।
नाई अपने काम में बहुत निपुण था।
एक दिन वहाँ के राजा ने नाई को अपने पास बुलवाया और रोज उसे महल में आकर हजामत बनाने को कहा।
नाई ने भी बड़ी प्रसन्नता से राजा का प्रस्ताव मान लिया।
नाई को रोज राजा की हजामत बनाने के लिए एक स्वर्ण मुद्रा मिलती थी।
इतना सारा पैसा पाकर नाई की पत्नी भी बड़ी खुश हुई।
अब उसकी जिन्दगी बड़े आराम से कटने लगी।
घर पर किसी चीज की कमी नहीं रही और हर महीने अच्छी रकम की बचत भी होने लगी।
नाई, उसकी पत्नी और बच्चे सभी खुश रहने लगे।
एक दिन शाम को जब नाई अपना काम निपटा कर महल से अपने घर वापस जा रहा था।
तो रास्ते में उसे एक आवाज सुनाई दी।
आवाज एक यक्ष की थी।
यक्ष ने नाई से कहा-
‘‘मैंने तुम्हारी ईमानदारी के बड़े चर्चे सुने हैं।
मैं तुम्हारी ईमानदारी से बहुत खुश हूँ और तुम्हें सोने की मुद्राओं से भरे सात घड़े देना चाहता हूँ।
क्या तुम मेरे दिये हुए घड़े लोगे ?”
नाई पहले तो थोड़ा डरा,
पर दूसरे ही पल उसके मन में लालच आ गया और उसने यक्ष के दिये हुए घड़े लेने का निश्चय कर लिया।
नाई का उत्तर सुनकर उस आवाज ने फिर नाई से कहा-
‘‘ठीक है सातों घड़े तुम्हारे घर पहुँच जाएँगे।’’
नाई जब उस दिन घर पहुँचा, वाकई उसके कमरे में सात घड़े रखे हुए थे।
नाई ने तुरन्त अपनी पत्नी को सारी बातें बताईं और दोनों ने घड़े खोलकर देखना शुरू किया।
उसने देखा कि छः घड़े तो पूरे भरे हुए थे, पर सातवाँ घड़ा आधा खाली था।
नाई ने पत्नी से कहा—
‘‘कोई बात नहीं, हर महीने जो हमारी बचत होती है, वह हम इस घड़े में डाल दिया करेंगे।
जल्दी ही यह घड़ा भी भर जायेगा और इन सातों घड़ों के सहारे हमारा बुढ़ापा आराम से कट जायेगा।”
अगले ही दिन से नाई ने अपनी दिन भर की बचत को उस सातवें में डालना शुरू कर दिया।
पर सातवें घड़े की भूख इतनी ज्यादा थी कि वह कभी भी भरने का नाम ही नहीं लेता था।
धीरे-धीरे नाई कंजूस होता गया और घड़े में ज्यादा पैसे डालने लगा।
क्योंकि उसे जल्दी से अपना सातवाँ घड़ा भरना था।
नाई की कंजूसी के कारण अब घर में कमी आनी शुरू हो गयी, क्योंकि नाई अब पत्नी को कम पैसे देता था।
पत्नी ने नाई को समझाने की कोशिश की।
पर नाई को बस एक ही धुन सवार थी—सातवां घड़ा भरने की।
अब नाई के घर में पहले जैसा वातावरण नहीं था।
उसकी पत्नी कंजूसी से तंग आकर बात-बात पर अपने पति से लड़ने लगी।
घर के झगड़ों से नाई परेशान और चिड़चिड़ा हो गया।
एक दिन राजा ने नाई से उसकी परेशानी का कारण पूछा।
नाई ने भी राजा से कह दिया अब मँहगाई के कारण उसका खर्च बढ़ गया है।
नाई की बात सुनकर राजा ने उसका मेहताना बढ़ा दिया।
पर राजा ने देखा कि पैसे बढ़ने से भी नाई को खुशी नहीं हुई।
वह अब भी परेशान और चिड़चिड़ा ही रहता था।
एक दिन राजा ने नाई से पूछ ही लिया कि कहीं उसे यक्ष ने सात घड़े तो नहीं दे दिये हैं ?
नाई ने राजा को सातवें घड़े के बारे में सच-सच बता दिया।
तब राजा ने नाई से कहा-
“सातों घड़े यक्ष को वापस कर दो, क्योंकि सातवां घड़ा साक्षात लोभ है, उसकी भूख कभी नहीं मिटती।”
नाई को सारी बात समझ में आ गयी।
नाई ने उसी दिन घर लौटकर सातों घड़े यक्ष को वापस कर दिये।
घड़ों के वापस जाने के बाद नाई का जीवन फिर से खुशियों से भर गया था।
कहानी हमें बताती है कि हमें कभी लोभ नहीं करना चाहिए।
निरंकार ने हम सभी को अपने कर्मों के अनुसार चीजें दी हैं।
हमारे पास जो है, हमें उसी से खुश रहना चाहिए।
अगर हम लालच करें तो सातवें घड़े की तरह उसका कोई अंत नहीं होता।