जो सेवकु साहिवहि संकोची।निज हित चहई तासु मति पोची।
सेवक हित साहिब सेवकाई।करै सकल सुभ लोभ बिहाई।
सेवक यदि मालिक को दुविधा में डालकर अपना भलाई चाहता है|तो उसकी बुद्धि नीच है।सेवक की भलाई इसी में है कि वह
तमाम सुखों और लोभों को छोड़कर स्वामी की सेवा करे।