भक्ति Kya है ?
शिकवे गिले को लब पर अपने न लाना ही भक्ति है
मन वचन और कर्म से हरि का हो जाना ही भक्ति है
प्रेम की धुन में और लगन में खो जाना ही भक्ति है
जीते जी ही गुरु के दर पर मर जाना ही भक्ति है
मैं मेरी का भाव मनों में न आना ही भक्ति है
प्रभु रज़ा में राजी हरदम रह पाना ही भक्ति है
हंसते हंसते कटु वचन को सह जाना ही भक्ति है
गुरु के सुर में अपने सुर भी मिल जाएं तो भक्ति है