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छट जाये अज्ञान अंधेरा तो फिर रोज़ दिवाली है।

छट जाये अज्ञान अंधेरा तो फिर रोज़ दिवाली है।

ज्ञान उजाला डाले डेरा तो फिर रोज़ दिवाली है।

मन अवध में राम जो आये तो फिर रोज़ दिवाली है।

अहंकार का वध हो जाये तो फिर रोज़ दिवाली है।

ज्योत से ज्योत जगाते जायें तो फिर रोज़ दिवाली है।

रोशन राह बनाते जायें तो फिर रोज़ दिवाली है।

प्रेम प्रीत की फुलझड़ी हो तो फिर रोज़ दिवाली है।

मिलवर्तन की जुड़ी कड़ी हो तो फिर रोज़ दिवाली है।

समदृष्टि की बंटे मिठाई तो फिर रोज़ दिवाली है।

जग हो इक परिवार की न्याईं तो फिर रोज़ दिवाली है।

झूठ पर मन की विजय हो तो फिर रोज़ दिवाली है।

One thought on “छट जाये अज्ञान अंधेरा तो फिर रोज़ दिवाली है।

  • Normally I don’t learn article on blogs, however I would like to say that this write-up very pressured me to check out and do it! Your writing taste has been amazed me. Thank you, very great post.

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