सुबह की “चाय” और बड़ों की “राय”
समय-समय पर लेते रहना चाहिए…..
जल के बिना, नदी व्यर्थ है
अतिथि के बिना, आँगन व्यर्थ है।
प्रेम न हो तो, सगे-सम्बन्ध व्यर्थ है।
तथा यदि जीवन में गुरु न हो
तो जीवन व्यर्थ है।
अतः जीवन में
“गुरु” नितांत आवश्यक है,
“गुरुर” नही”
गुरु जी के सानिध्य में आनंदित रहें ।।