जर्रे जर्रे में रहता है ये रब
जर्रे जर्रे में रहता है ये रब I
अंग के संग रहता है ये रब I
ढूंढते फिरते हैं फिर भी कहते हैं ,
सब जगह रहता है ये रब I
बिना नज़र के ये नज़र नहीं आता ,
मेरी नज़र में रहता है ये रब I
सोचते यह रहे कि ऊपर है ,
मगर कहाँ नहीं है ये रब I
मैं मेरी को मिटाने वालों के ,
बहुत करीब रहता है ये रब I
है ये ‘ मेहेर मुर्शद की ,
संग हर पल रहता है ये रब I –